कोरोनावायरस: ब्रूफ़ेन लेना सही है या नहीं, इससे कोई ख़तरा तो नहीं!- फ़ैक्ट चेक
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कोरोनावायरस: ब्रूफ़ेन लेना सही है या नहीं, इससे कोई ख़तरा तो नहीं!- फ़ैक्ट चेक
रिएलिटी चेक टीम और मॉनिटरिंगबीबीसी न्यूज़
अगर आपकी जानकारियों का स्रोत सोशल मीडिया पर आने वाली ख़बरे हैं तो आपने भी यह सुना या पढ़ा होगा कि कोरोना वायरस संक्रमण होने पर ब्रूफ़ेन लेना ख़तरनाक हो सकता है.
इसके साथ ही कई तरह की मेडिकल सलाह और मैसेज भी एक ग्रुप से दूसरे ग्रुप में भेजे जा रहे हैं, जिसमें तथ्यों की भरपूर अनदेखी की जा रही है.
बीबीसी ने इस बात की पड़ताल के लिए कई चिकित्सा विशेषज्ञों से बात की.
अगर मेडिकल एक्सपर्ट्स की बात मानें तो विशेषज्ञों की ओर से किसी भी तरह की ऐसी सलाह नहीं जारी की गई है जिसमें कहा गया है कि अगर कोरोना वायरस के लक्षण नज़र आएं तो ब्रूफ़ेन का इस्तेमाल किया जा सकता है.
इसके साथ ही जो लोग पहले से ही किसी मेडिकल कंडिशन के लिए ब्रूफ़ेन ले रहे हैं, उन्हें भी ऐसा नहीं कहा गया है कि वो इसका इस्तेमाल बंद कर दें. अगर उन्हें इसका इस्तेमाल बंद करना भी है तो इसके लिए डॉक्टर की सलाह लेकर ही कोई फ़ैसला करना चाहिए.
Brufen 400 Tablet is a pain relieving medicine. It is used to treat many conditions such as headache, fever, period pain, toothache, colds, and mild arthritis. It is also a common ingredient in many cold and flu remedies. 1mg is committed to delivering goods on time in your city, despite the current lockdown
Paracetamol tablets
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Paracetamol (acetaminophen) is a pain reliever and a fever reducer. ... Paracetamol is used to treat many conditions such as headache, muscle aches, arthritis, backache, toothaches, colds, and fevers. It relieves pain in mild arthritis but has no effect on the underlying inflammation and swelling of the joint.
पैरासीटामॉल और ब्रूफ़ेन दोनों ही काफी लोकप्रिय मेडिसीन हैं. इन दवाओं का इस्तेमाल तापमान को कम करने और फ़्लू के लक्षण नज़र आने पर किया जाता है. लेकिन ब्रूफ़ेन और दूसरे कोई भी नॉन स्टेरॉइड एंटी-इंफ़्लेमेटरी ड्रग्स (एनएसएआईडी) सबके इस्तेमाल के लिए नहीं हैं और बहुत से लोगों में इसके साइड-इफ़ेक्ट्स भी नज़र आते हैं.
ख़ासतौर पर उन लोगों में जिन्हें अस्थमा की परेशानी हो, दिल से जुड़ी कोई बीमारी हो या सांस से जुड़ी कोई तक़लीफ़ हो.
अभी तक इस बात के कोई पुख़्ता सुबूत नहीं मिले हैं कि ब्रूफ़ेन के इस्तेमाल से कोरोना वायरस का संक्रमण और ख़तरनाक हो जाएगा...जब तक हमें इस बात की और जानकारी नहीं मिलती है, तब तक आप कोरोना वायरस के लक्षण ज़ाहिर होने पर पैरासिटामॉल ले सकते हैं लेकिन अगर आपके डॉक्टर ने आपको इसके लिए मना किया है तो इसका इस्तेमाल बिल्कुल भी ना करें
जो लोग अपने डॉक्टर की सलाह से ही ब्रूफ़ेन ले रहे हैं, उन्हें भी बिना डॉक्टर की सलाह के इसे बंद नहीं करना चाहिए.
लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसीन के डॉक्टर शैरलॉ वारेन-गाश के मुताबिक़, "हालांकि हमें अभी तक यह नहीं पता है कि ब्रूफ़ेन का कोरोना वायरस संक्रमण की गंभीरता पर कोई विशेष प्रभाव पड़ता है या नहीं."
वो कहते हैं अगर गंभीरता और सावधानी के लिहाज़ से देखें तो पहले विकल्प के तौर पर पैरासिटामॉल को प्राथमिकता देना ही सही होगा.
कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनमें ये पाया गया है कि सांस से जुड़ी परेशानी होने पर अगर ब्रूफ़ेन का इस्तेमाल किया गया है तो इससे गंभीरता बढ़ गई है.
झूठी कहानियां
हालांकि मेडिकल सेंटर्स की वेब साइट्स पर भले ही कुछ लिखा हो, इस बात से इनक़ार नहीं किया जा सकता है कि इस संबंध में झूठी कहानियों और ग़लत जानकारियाँ ऑनलाइन मौजूद है. फर्जी मैसेज बड़ी तेज़ी से वॉट्सऐप ग्रुप में फैल रहे हैं:
- "कोर्क में चार लोगों को गहन चिकित्सा केंद्र में रखा गया था जिन्हें कोई ऐसी बीमारी नहीं थी- सभी को एंटी इंफ़्लेमेटरी ड्रग दी जा रही थी और अब इस बात की चिंता बढ़ गई है कि इस वजह से उन्हें कोई बहुत भयंकर बीमारी ना हो गई हो" (झूठी ख़बर)
- "वियना यूनिवर्सिटी ने कोरोना वायरस संक्रमित लोगों को चेतावनी देता हुआ एक संदेश भेजा है जिसमें कहा गया है कि वो किसी भी क़ीमत पर ब्रूफ़ेन ना लें क्योंकि ऐसा पाया गया है कि ब्रूफ़ेन के सेवन से इस वायरस की संख्या और तेज़ी से बढ़ती है और यही वजह है कि इटली में कोरोना वायरस का संक्रमण इस स्तर पर पहुंच चुका है और स्थिति इतनी ख़राब हो गई है." (झूठी ख़बर)
- फ्रांस के टॉलॉस यूनिवर्सिटी अस्पताल में कोरोना वायरस के चार बेहद गंभीर मामले सामने आए हैं, ये सभी युवा हैं. इन लोगों को पहले से स्वास्थ्य से जुड़ी कोई समस्या नहीं थी. उनके साथ समस्या तब हुई जब उन्होंने कोरोना वायरस के लक्षण सामने आने पर ब्रूफ़ेन जैसे दर्द निवारक का सेवन किया. (झूठी ख़बर)
ये और इस तरह की ढेरों कहानियां सोशल मीडिया पर तेज़ी से शेयर की जा रही हैं. सिर्फ़ वॉट्सऐप पर नहीं बल्कि इंस्टाग्राम पर भी.
आमतौर पर इस तरह के मैसेज कॉपी-पेस्ट होते हैं और या फिर इस तरह के मैसेज किसी ऐसे स्रोत से आए होते हैं जो दोस्त या रिश्तेदार ही होता है...कई बार इनका संबंध मेडिकल बैकग्राउंड से भी होता है.
ये सभी दावे पूरी तरह से बेबुनियाद हैं
आयरलैंड की इंफेक्शियस डिज़ीज़ सोसायटी का कहना है कि वॉट्सऐप पर कोर्क के मरीज़ों को लेकर जो मैसेज एक-दूसरे को भेजे जा रहे हैं, "वो पूरी तरह से फ़ेक मैसेज है". सोसायटी की ओर से कहा गया है कि अगर आप में से किसी को भी इस तरह का मैसेज मिलता है तो उसे पूरी तरह अनदेखा करें या फिर डिलीट कर दें.
टॉलॉस यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ने चेतावनी देते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर जो ख़बरें तेज़ी से सर्कुलेट हो रही हैं, उनमें दी जा रही जानकारी किसी भी लिहाज़ से सही नहीं है.
तो ऐसे में अभी तक हमें कोरोना वायरस और ब्रूफ़ेन के बारे में क्या कुछ पता है?
अगर पुष्ट जानकारियों और शोध की बात करें तो ब्रूफ़ेन और कोरोना वायरस को लेकर कोई शोध अभी तक नहीं हुआ है.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथेम्प्टन में प्राइमरी केयर के प्रोफ़ेसर पॉल लिटिल के मुताबिक़, श्वसन क्रिया से जुड़े कुछ दूसरे संक्रमण हैं, जिनके बारे में ऐसा माना जाता है कि ब्रूफ़ेन के इस्तेमाल से चुनौतियां और गंभीरता बढ़ जाती है. साथ ही ज़्यादा कमज़ोरी और बीमारी भी हो सकती है. हालांकि यह पुख़्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इसके लिए सिर्फ़ ब्रूफ़ेन ही ज़िम्मेदार है.
पर बहुत से विशेषज्ञ मानते हैं कि शायद ब्रूफ़ेन का एंटी-इंफ़्लेमेटरी गुण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग के प्रोफ़ेसर पारास्तो का कहना है कि ऐसे बहुत से अध्ययन है जिनमें कहा गया है कि सांस लेने से जुड़ा अगर कोई संक्रमण है और ब्रूफ़ेन का प्रयोग किया जाता है तो स्थिति ख़राब हो सकती है या फिर दूसरी परेशानियां बढ़ सकती हैं.
वो कहती हैं, "मैंने अभी तक ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण तो नहीं देखा है जिसमें कोई 25 साल का बिल्कुल स्वस्थ शख़्स कोरोना वायरस के लक्षण नज़र आने पर ब्रूफ़ेन ले और इससे ख़तरा और बढ़ गया हो."
टॉलॉस यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल ने चेतावनी देते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर जो ख़बरें तेज़ी से सर्कुलेट हो रही हैं, उनमें दी जा रही जानकारी किसी भी लिहाज़ से सही नहीं है.
तो ऐसे में अभी तक हमें कोरोना वायरस और ब्रूफ़ेन के बारे में क्या कुछ पता है?
अगर पुष्ट जानकारियों और शोध की बात करें तो ब्रूफ़ेन और कोरोना वायरस को लेकर कोई शोध अभी तक नहीं हुआ है.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ साउथेम्प्टन में प्राइमरी केयर के प्रोफ़ेसर पॉल लिटिल के मुताबिक़, श्वसन क्रिया से जुड़े कुछ दूसरे संक्रमण हैं, जिनके बारे में ऐसा माना जाता है कि ब्रूफ़ेन के इस्तेमाल से चुनौतियां और गंभीरता बढ़ जाती है. साथ ही ज़्यादा कमज़ोरी और बीमारी भी हो सकती है. हालांकि यह पुख़्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि इसके लिए सिर्फ़ ब्रूफ़ेन ही ज़िम्मेदार है.
पर बहुत से विशेषज्ञ मानते हैं कि शायद ब्रूफ़ेन का एंटी-इंफ़्लेमेटरी गुण शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम कर देता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ रीडिंग के प्रोफ़ेसर पारास्तो का कहना है कि ऐसे बहुत से अध्ययन है जिनमें कहा गया है कि सांस लेने से जुड़ा अगर कोई संक्रमण है और ब्रूफ़ेन का प्रयोग किया जाता है तो स्थिति ख़राब हो सकती है या फिर दूसरी परेशानियां बढ़ सकती हैं.
वो कहती हैं, "मैंने अभी तक ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण तो नहीं देखा है जिसमें कोई 25 साल का बिल्कुल स्वस्थ शख़्स कोरोना वायरस के लक्षण नज़र आने पर ब्रूफ़ेन ले और इससे ख़तरा और बढ़ गया हो."
ट्विटर और फ़ेसबुक पर ऐसी पोस्ट्स जिन्हें कट-कॉपी-पेस्ट किया गया उन्हें इस दावे के साथ शेयर किया गया कि यह मैसेज परिवार में मौजूद डॉक्टर द्वारा भेजा गया है. कहा गया कि उन्हें वियना की प्रयोगशाला से यह जानकारी मिली है कि कोविड-19 की वजह से मारे गए अधिकांश लोगों के सिस्टम में ब्रूफ़ेन पाया गया है.
कई पोस्ट्स तो इस दावे के साथ शेयर की गईं कि कोरोना वायरस ब्रूफ़ेन की वजह से ही पनपता है जबकि इसको लेकर कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है.
यह ऑनलाइन अफ़वाह जर्मन भाषा में भी प्रचारित हुई. वॉयस मैसेज के माध्यम से और टेक्स्ट मैसेज के माध्यम से ये कई वॉट्सएप ग्रुप में शेयर हुई. इन संदेशों में एक महिला के हवाले से यह दावा किया गया कि वियना की प्रयोगशाला ने इटली में कोरोना वायरस की वजह से होने वाली मौतों पर शोध किया और पाया कि मारे गए ज़्यादातर लोगों ने ब्रूफ़ेन का इस्तेमाल किया था.
इस तरह के संदेश वायरल तो बहुत हुए लेकिन इनका आधार क्या है, इसका कोई ठोस सुबूत नहीं है. जर्मनी की अपोनेटडॉटडे फ़ार्मा न्यूज़ वेबसाइट का कहना है कि अफ़वाहों और साज़िशों के मामले में यह एक तय पैटर्न है.
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